याद तुम आते रहे इक हूक़ सी उठती रही नींद मुझसे, नींद से मैं भागती छुपती रही रात भर बैरन निगोड़ी चाँदनी चुभती रही आग सी जलती रही, गिरती रही शबनम
साहिबा! लाल जोड़े में क्या कमाल लगती है।
तारीफ़ करता था मैं उसकी जुल्फों की😘..
मेरे लफ्ज़ कम पड़ गए जब उसने साड़ी पहन ली...🤣😋
आंख खुलते ही याद आ जाता है चेहरा तेरा, दिन की पहली खुशी भी कमाल होती है
लगता है कई रातों का जागा था मुसव्विर
तस्वीर की आँखों से थकन झाँक रही है
तुम हुस्न की ख़ुद इक दुनिया हो शायद ये तुम्हें मालूम नहीं
महफ़िल में तुम्हारे आने से हर चीज़ पे नूर आ जाता है
मत सवरा करो, तुम
हमे तो तुम
बिखरे हुए ही लाजवाब लगते हो
ना होती है मुलाकाते ना ही दीदार होता है
खुदा जब हुस्न देता है
नजाकत आ ही जाती है,
कदम सोच-सोच कर रखती हो,
कमर बलखा ही जाती है...
इंतज़ार तो बहुत था हमें,
लेकिन आये न वह कभी,
हम तो बिन बुलाये ही आ जाते,
अगर होता उन्हें भी इंतज़ार कभी।
कभी यूँ भी तो हो
परियों की महफ़िल हो
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ
कभी यूँ भी तो हो...
कभी यूँ भी तो हो
ये नर्म, मुलायम, ठंडी हवाएँ
जब घर से तुम्हारे गुज़रें
तुम्हारी खुशबू चुराएँ
मेरे घर ले आयें
कभी यूँ भी तो हो..
कभी यूँ भी तो हो
ये बादल ऐसा टूट के बरसे
मेरे दिल की तरह मिलने को
तुम्हारा दिल भी तरसे
तुम निकलो घर से
कभी यूँ भी तो हो...
ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
तस्वीर मैंने मांगी थी शोखी तो देखिए
इक फूल उसने भेज दिया है गुलाब का
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
उम्र-ए-दराज़ माँग के लाई थी चार दिन
दो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार में
निगाहें इस क़दर क़ातिल कि उफ़ उफ़
अदाएँ इस क़दर प्यारी कि तौबा
धड़कने रुक सी गयी, तेज हुयी नब्ज-ए -हयात
आपने प्यार से मेरी तरफ देखा तो नहीं
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
सौदेबाजी का हुनर कोई उनसे सिखे,
चेहरे का तिल दिखाकर दिल ले गई
न जाने क्या कशिश है उसकी मदहोश आँखों मैं
नज़र अंदाज़ जितना भी करों नज़र उसी पर जाती है
तेरी आँखों की कशिश भी खींचती है इस कदर,
ये दिल सिर्फ बहलता नहीं बहक जाने की जिद करता है।
आँखों में शराब और लबों पे गुलाब रखती है,
साहिबा! लाल जोड़े में क्या कमाल लगती है।
तुझसे दूर जाने का इरादा ना था,
सदा साथ रहने का भी वादा ना था,
तुम याद ना करोगे ये जानते थे हम,
पर इतनी जल्दी भूल जाओगे अंदाज़ा ना था! ? ?
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
देखिए पाते हैं उशशाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बराह्मन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
इंतज़ार तो बहुत था हमें,
लेकिन आये न वह कभी,
हम तो बिन बुलाये ही आ जाते,
अगर होता उन्हें भी इंतज़ार कभी।
एक रात वो गया था जहाँ बात रोक के,
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
लाल आँखे और होंठ शबनमी,
पी के आये हो या खुद शराब हो?
काली जुल्फ़ें और मुस्कुराते होठो की लाली,
कितने दीवानों को तुम पागल बना डाली.
अफ़ीमी आखें, शर्बती गाल, और शराबी लब,
खुदा ही जाने नशे में तुम हो या तुममें नशा।
जब तन्हाई में तुम्हारी याद आती है,
तो मेरे होठों पर मुस्कुराहट लाती है.
लहराते बाल, कजरारे आँख और रसीले होठ,
कत्ल करने के लिए ये औजार काफी है.
झील सी आँखों का ख्वाब बता दो,
इन गुलाबी होठों का राज बता दो,
आखों में तो इश्क नजर आता नहीं
फिर इन शरारती मुस्कानों का राज बता दो.
बहुत फूल देखे पर वो रंग न देखा,
जो तेरे ख़ूबसूरत होठों का था.
गुलाब भी बेरंग हो गया शर्मा कर,
देखी जो रंगत लब-ए-दिलदार की.
जिसे याद करने से होंठों में मुस्कुराहट आ जाए
एक ऐसा खूबसूरत ख्याल हो तुम.
आँखे तेरी यूँ जैसे नशीले दो जाम
होठो की पंखुड़ियाँ जैसे एक गुलाबी शाम
देखता रहूँ तुझको रात और दिन
भूल ना पाऊँ तेरा चेहरा सुबेहो शाम
तू नहीं तो तेरा ख्याल सही
कोई तो हम-ख्याल है मेरा
दिल से तेरा खयाल ना जाये तो क्या करू
मैं क्या करू कोई ना बताये तो क्या करू
कभी रजामंदी,
तो कभी बगावत है इश्क...
मोहब्बत राधा की है,
तो मीरा की इबादत है इश्क!
तुम पुकारो तो सही फ़िक्र - ए - जहाँ रहने दो
दिल से निकलेगी अगर दिल से सुनी जाएगी
दायरे में रहते हुए हदो को पार करने का सलीका आ ही जाता है
जुबाँ को रोको तो आँखों में झलक जाता है
ये ज़ज़्बा - ए - इश्क है, इसे सब्र कहाँ आता है
इश्क़ ने कब इज़ाज़त ली है आशिक़ों से
वोह होता है और होकर ही रहता है 💕
तुझसे दूर जाने का इरादा ना था,
सदा साथ रहने का भी वादा ना था,
तुम याद ना करोगे ये जानते थे हम,
पर इतनी जल्दी भूल जाओगे अंदाज़ा ना था!
कभी-कभी, यूं ही चले आया करो दिल की दहलीज पर,
अच्छा लगता है, यूँ तन्हाइयों.. में तुम्हारा दस्तक देना!
ना जाने क्या कशिश है तेरे इस प्यार में
मैं बरसो बिता सकता हूँ तेरे इंतजार में
तू जो मिल जाए सजा लू पलकों पे
बस बता दे कितना इम्तेहान लेगी ऐतबार में
ख़ुशनसीब है वो जिन्हें धूप मिली
मेरे सितारे तो अभी भी बादलों की ओट में हैं
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिये आ
अब तक दिल-ए-खुशफ़हम को हैं तुझ से उम्मीदें
ये आखिरी शम्में भी बुझाने के लिये आ
इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जां मुझको रुलाने के लिये आ
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिये आ
माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ
जैसे तुम्हें आते हैं ना आने के बहाने
ऐसे ही किसी रोज़ न जाने के लिए आ
पहले से मरासिम ना सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रहे दुनिया ही निभाने के लिये आ
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से खफा है तो ज़माने के लिये आ
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